राज्य सरकार के नाकाम रहने पर कलकत्ता हाई कोर्ट ने पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद हुई हिंसा की कोर्ट की निगरानी में CBI जांच के आदेश दिए हैं। हत्या और रेप के मामलों की जांच CBI करेगी । दूसरे मामलों की जांच SIT करेगी। कोर्ट ने राज्य सरकार को हिंसा से पीड़ित लोगों को मुआवजा देने का भी आदेश दिया है।
कोर्ट ने रिपोर्ट पेश करने में 6 हफ्ते का समय दिया है। चुनाव आयोग पर टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने कहा है कि EC को हिंसा पर बेहतर भूमिका निभानी चाहिए थी।
17 लोगों की मौत: पुलिस ने 17 लोगों के मारे जाने की पुष्टि की थी। ,भाजपा का आरोप था कि उनके इससे कई गुना ज्यादा कार्यकर्ता मारे गए हैं। भाजपा ने एक सूची तैयार कर की थी। सूची के मुताबिक चुनाव के बाद हत्या, हिंसा, आगजनी और लूटपाट की 273 घटनाएं हुईं थी।
गृह मंत्रालय ने मांगी थी रिपोर्ट: अप्रैल-मई में हुए बंगाल चुनाव के नतीजे वाले दिन कोलकाता में BJP दफ्तर को आग लगा दी गई थी। इसके अगले दिन 2 पार्टी कार्यकर्ताओं की पीट-पीटकर हत्या की खबर सामने आई थी। विपक्षी पार्टी के कार्यकर्ताओं को निशाना बनाए जाने पर गृह मंत्रालय ने बंगाल सरकार से रिपोर्ट भी मांगी थी।
NHRC ने कोर्ट से कहा था- बंगाल में कानून व्यवस्था का मजाक बना हुआ है : आयोग ने हिंसा को लेकर अदालत से कहा था कि बंगाल में कानून का शासन नहीं, बल्कि शासक का कानून चलता है। यहाँ कानून की धज्जियां उड़ाई जाती है। निष्पक्ष जाँच हेतु बंगाल हिंसा के मामलों की जांच राज्य से बाहर की जानी चाहिए।
ममता बनर्जी का ऐतराज: ममता बनर्जी ने कहा था कि आयोग को न्यायपालिका का सम्मान करना चाहिए और इस रिपोर्ट को लीक नहीं किया जाना चाहिए था।
मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट के पॉइंट: 1. हिंसा की CBI जाँच कराई जानी चाहिए।
2. बंगाल में बड़े पैमाने पर हुई हिंसा ये दिखाती है कि राज्य सरकार पीड़ितों की दुर्दशा को लेकर उदासीन है।
3. हिंसा के मामलों से जाहिर होता है कि ये उन लोगों से बदला लेने के लिए की गई जिन्होंने चुनाव के दौरान दूसरी पार्टी को समर्थन देने की ‘जुर्रत’ की।
4. राज्य सरकार के कुछ अधिकारी हिंसा की इन घटनाओं में मूक दर्शक बने रहे और कुछ इन हिंसक घटनाओं में खुद शामिल रहे हैं।